Once upon a time....
बहुत पहले की बात है।
एक गांव में 'सच्चाई' रहा करती थी। वह हर रोज़ गांव के हर घर पर दस्तक देती और हर दरवाज़े से उसे लौटा दिया जाता था, क्योंकि उसकी नग्नता से सभी लोग डरते थे। गांव के बाहरी मोड़ पर हर दिन आकर 'सच्चाई' बिलखती थी पर कोई उसे नहीं अपनाता। 'वक़्त' अपनी खिड़की से झांकता हुआ हर दिन यह दृश्य देखता था पर न कुछ कहता था न कुछ करता था।
एक दिन 'सच्चाई' मोड़ के उसी कोने में भूखी-प्यासी सिकुड़ी बैठी कांप रही थी, तभी वहां 'झूठ' पहुंची। 'झूठ' को उस पर दया आ गई और वह 'सच्चाई' को वक़्त के घर ले गई। 'झूठ' ने 'वक़्त' से पूछा- "दादा! आपने इसके साथ ऐसा कैसे होने दिया? कुछ किया क्यों नहीं?"
'वक़्त' ने भी धीमे से गर्दन उठा सच्चाई को देखा तो उसका अंतर कांप उठा। उसे ग्लानि हुई कि आख़िर क्यों उसने होने दिया यह सब। पश्चाताप करते हुए उसने 'सच्चाई' से माफ़ी मांगी और फ़िर 'वक़्त' ने 'सच्चाई' को एक भेंट दी। एक चोला, एक नयी पोशाक- 'कहानी'।फ़िर घर से 'सच्चाई' को 'कहानी' पहनाकर रवाना किया।
'कहानी' में लिपटी 'सच्चाई' फिर से गांव पहुंची और लोगों के दरवाज़े खटखटाये। और ये क्या! इस बार लोगों ने गर्मजोशी से 'सच्चाई' का स्वागत किया और अपने घर के भीतर उसे बुलाया।
सारा मंज़र देखकर 'झूठ' से रहा नहीं गया और उसने 'वक़्त' से इस बदलाव का कारण पूछा। तब वक़्त ने बड़ी गहरी बात कही कि- ये लोग 'सच्चाई' की नग्नता से घबराते थे, पर अब 'कहानी' अपने चोले में छिपे 'हौसले' और 'उम्मीद' को साथ लेकर गयी है उन दरवाज़ों पर तो बस उन्होंने 'सच्चाई' को भी अपनाना सीख लिया।
'कहानी' में ही वो हुनर है कि वो सोच, ख़्यालात, और यहाँ तक कि 'वक़्त' को भी बदल दे बस सही इस्तेमाल आना चाहिये।
आज़ खुद 'वक़्त' ने इस 'कहानी' को एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ा ताकि 'सच्चाई' अपने असली मक़ाम तक पहुंच सके।
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आप सभी को सहृदय आभार जिन्होंने इस रचना को पढ़ा।
पहली बार लेखन की इस विधा में क़लम को बढ़ाया है, उम्मीद है आप सभी थोड़ा और वक़्त निकाल कर सुझाव एवं आपके विचार ज़रूर बताएंगे।🙏🙏
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ऐसा प्रतीत ही नही होता कि आप यह काम पहली बार कर रही है । कम शब्दों में अत्यंत गूढ़ बात कही । श्रेष्ठ रचना ।
ReplyDeleteऐसा प्रतीत ही नही होता कि आप यह काम पहली बार कर रही है । कम शब्दों में अत्यंत गूढ़ बात कही । श्रेष्ठ रचना ।
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