GazalЁЯМа

बस एक ख़्याल तुम्हारा और हज़ारों
लकीरें उभरती
पेशानी पर।

सज़दे किये जाने कितने ही मैंने,
बाज़ दफ़ा तेरी
नादानी पर।

रुदादे ग़म कह रंगे जो पन्ने सारे,
चली देकर तुझे
निशानी पर।

सुकूने अबदी हासिल कर भूली,
हर साँस थी तेरी
मेहरबानी पर।
••••••••
पेशानी- माथा
सुकुने अबदी- मौत
रुदादे ग़म- प्रेम व्यथा का वृत्तांत
•••✍✍
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