ओस की बूंद
से ठंड में ठिठुरती
हुयी दूर्ब।

कसमसाई, सकुचाई
अपने ही आप में
सिकुड़ती हुई।
खिल उठी अचानक
पाकर गर्माहट
वाली धूप।

ओस ने भी
किरण पर धीमे से
अधिकार जताया।
मिलकर उससे
खो जाने का
हुनर कहाँ से पाया।

भोर हुई फिर
देखो बिखरी आभा
हुआ दृश्य अनूप।

ओस की बूंद
से ठंड में ठिठुरती
हुयी दूर्ब।
••✍✍✍
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