Aaina...

आज फ़िर से मैंने ख़ुद को
उसी आईने में ढूँढा.....
बरसों पहले जिसकी गर्द
फूंक कर साफ़ की थी मैंने।
आब-ए-सूरत से मिलाने की
फ़िर दरख़्वास्त की थी मैंने।

आज फ़िर से मैंने ख़ुद को
उसी आईने में ढूँढा.....
जिससे यौवन में पहरों पहर
दिल की बात की थी मैंने।
नज़्में, कहानियां उसको सुनाते हुए
ख़ुद से भी मुलाक़ात की थी मैंने।

आज फ़िर से मैंने ख़ुद को
उसी आईने में ढूँढा.....
वो जो महज़ सूरत का नहीं
सीरत का अक्स गढ़ता है।
देख़ने पर ख़ुद की, दिखाने पर 
सबका बेनक़ाब चेहरा पढ़ता है।

आज फ़िर से मैंने ख़ुद को
उसी आईने में ढूँढा.....
जो जनता है मुझको मुझसे बेहतर
जो हमदर्द है कभी हमराज़ भी
आज की हक़ीक़त बयां करता
दिखाता कल के रंगीन ख़्वाब भी।

आज फ़िर से मैंने ख़ुद को
उसी आईने में ढूँढा.....
ढूंढकर ख़ुद की फ़िर
तलाश करने के लिए।
नयी-पुरानी जमा धूल
फ़िर से साफ़ करने के लिए।
••✍✍✍
© Śमृति #Mukht_iiha
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