2017-2018

कम्बख़्त ये साल भी चल गुज़रा!!

चंद हर्फ़ कुछेक लफ़्ज़
बेहिस सी भागती कहानियों के बीच।
टूटे मिसरे अधूरे मतले
आहिस्ता सी बहती रुबाइयों के बीच।
तुम कभी नज़्मों में उतरे
कभी मैं बिखरी मज़मूनों में
और यूँ ही स्याही की पन्नों से कानाफ़ूसी में
कम्बख़्त ये साल भी चल गुज़रा!!

पहले पहल इस साल भी
उम्मीदों की पोटली निकाली थी।
कई दिन कोशिश के साथ बिता डाले
कुछ रातें ख़्वाबों संग तन्हा काटी थीं।
हम कई बार बिख़रे
पर थोड़ा और निख़रे
और यूँ ही बेहतर बनने वाली आराईश में
कम्बख़्त ये साल भी चल गुज़रा!!

अपने को ख़ूब टटोला भी
चुपचाप बहुत कुछ बोला भी।
कई नये मित्रों की सोहबत में
दिल की गिरहों को खोला भी।
तारीखों को बदल
फ़िर से नवी पहल
और यूँ ही अपनों संग बोलते बतियाने में
कम्बख़्त ये साल भी चल गुज़रा!!
••✍✍✍
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छायाचित्र आभार🤗 : !n+erne+

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