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प्रणय निवेदन!!

मैं दीप जलाये बैठी हूँ प्रियतम
मन मंदिर के द्वार पे।
तुम सिर हाथ धरो और उतरो अब
मेरे निज व्यवहार में।

मैं सांध्य आरती में घुल प्रियतम
गुंजन करती हर ताल पे।
तुम रजनीश से बन निखर जाना
पूजन के विस्तार में।

मैं गंगा सी पावन धारा बन प्रियतम
छलकूं तेरे भाल पे।
श्रृंगार हित चंदन अक्षत कुमकुम
लेकर आयी थाल में।

मैं रमी रहूँ नवनित तुझमें प्रियतम
जैसे मनके जाप पे।
तुम पुण्य प्रणय से बनकर आ जाना
बस मेरे संसार में।
•••✍✍✍
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