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कवि माननीय श्री गोपालदास जी नीरज द्वारा रचित कविता से प्रेरित।।🙏🙏
कोई त्रुटि हो तो सभी से करबद्ध क्षमा🙏🙏
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सृष्टि है शतरंज सी और 
हम सभी मोहरे यहां पर ।
हो शाह या पैदल शह पर ,
वार सब करते बराबर ।

उजली सी वो मैली चादर ,
बिछ गई फिर बिसात आकर ।
खेला है सारे ही रस्मी ,
चाल-औ-चलन को आज़माकर ।

ख़्वाब के हैं ख़ैर-ख़्वाह हम,
मुकाबिल जहां से नज़रें मिलाकर ।
नहीं पालते दिल में नदामत,
बाज़ी खेलते हैं सिर उठाकर ।

ग़र दग़ा दे जाये अपना,
भूल जाते हम क़िस्मत बताकर ।
जीत की ख़्वाहिश सब हैं रखते,
हम हारते भी उन्हें अपना बनाकर ।
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नदामत - ग्लानि
मुकाबिल - विरुद्ध
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