Desh Bhakti๐ฎ๐ณ
"सारे जहाँ से अच्छा...." एकाएक जैसे ही रेडियो पर यह गीत चालू हुआ, मन गर्व से भर उठा। नज़रें अख़बार से हटकर बालकनी के बाहर निहारने लगीं।
अपने देश की तालीम, विविधता पर अभी सीना तानना शुरू किया ही था कि देख़ा सामने के पब्लिक पार्क से कल ही लगी नई बैंच आज़ ग़ायब है! बग़ल की गली से आते शर्मा जी आज़ भी हमें देखकर हाथ हिलाये और जैसे ही हमने औपचारिक अभिवादन किया कि पान की पीक की ज़ोरदार पिचकारी ने सुबह ही साफ की गई सड़क और दीवार को रंग डाला और 'स्वच्छ भारत' का स्वप्न ध्वस्त दिखा।
तभी सामने से बाईक पर लगभग 150 की रफ़्तार में आते लड़कों के शोरगुल से एकबार दहल गए पर वो नारों का स्वर तानते हुए निकल गए??
सोचा वापस से अख़बार के पन्नों पर सर खपायें पर यहाँ भी टैक्स चोरी, रिश्वतखोरी,कालाबाज़ारी, मज़हबी दंगों, सामाजिक कमतरी और सबसे महत्वपूर्ण जनता की आवाज़ बने 'सियासी महकमों के अमर्यादित बयानों' ने करारा तमाचा लगाया।
और कानों में गीत के बोल पड़े कि 'मालूम क्या किसी को, दर्द-ए-निहाँ हमारा' !!!
अब सब देख़-पढ़ के बस यही सोच रहे हैं कि किस मुँह से अपने देश से उसे खोखला करने की माफ़ी मांगे और क्या बात करें 'देशभक्ति' की।
इसलिये बस पहले देश की शक्ति बनें फिर देशभक्ति करें!
🙏🇮🇳🙏
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