पहली बारिश की पहली उम्मीद


बारिश ने जो माटी को छुआ
तो सौंधी खुशबू बिखर गई ,
उन इत्र भरे बाज़ारों की
राहें ही मुझको बिसर गई........

पेड़ों की डाली पर सोये
कोपल की निंदिया उचट गई ,
ठंडी पुरवाई चली जो फिर
मौसम की रंगत बदल गई........

सावन की दस्तक हुई तो फिर
हर भय की कुण्डी चटक गई ,
जो गुजरा खेत खलिहानों से
कितने चेहरों की रंगत निखर गई.....

बारिश ने जो माटी को छुआ
तो सौंधी खुशबू बिखर गई ,
उन इत्र भरे बाज़ारों की
राहें ही मुझको बिसर गई........


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