मुक्त ईहा✍✍

शब्दों के साथ अपने तारतम्य को निभाते हुए विचारों को भावार्थ देने की छोटी सी कोशिश है लेखन। 
जहाँ स्वच्छन्द विचार एक पाखी की भांति सुरुचि से ज्ञानार्जन करते हुए सुदृढ़ भविष्य की संरचना तैयार करते हैं। जहाँ घोंसले की बुनियाद हौसले से रखी जाती है कि अगर मौसम ने साथ दिया तो प्रशंसा अन्यथा तूफानी हवाओं के समान आलोचना अथवा उपहास मिलने पर वृक्ष से धरातल पर गिर बिखर जाने का डर।।
किन्तु जब वह पाखी भी अपने हौसले को इन मुसीबतों से पस्त नहीं होने देते तो भला मैं क्यूँ अपनी वर्तनी को आलोचना के डर से रोक दूँ।।
क्योंकि सत्य तो यही है की आलोचना के समंदर को पार कर प्रशस्ति के आकाश में दैदीप्तयमान होने से अद्भुत शायद कुछ भी नहीं है।।
और यह तो प्रारब्ध है समाप्ती नहीं, यही उम्मीद है इस कलम की।।
क्योंकि शब्दों के साथ अपने तारतम्य को निभाते हुए विचारों को भावार्थ देने की छोटी सी कोशिश है लेखन





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